“बहुत मजा आया ना तुमका??”
रघु जानता था कि बम फूटने वाला है तभी वो मुँह फेर कर बैठा था
“क्यों.. क्या हुआ?”
एक बच्चे को भी मात दे रही थी उसकी मासूमियत..
शादी के बाद राधा की पहली होली थी मायके में ..बहुत उत्साह के साथ गई थी लेकिन सब हवा हो गया जब पतिदेव को उनकी सालियो सलहज ने छोड़ा ही नही..
“कितने मन से हम आए थे कि तुम्हरे साथ रंग खेंलेगें ..अरे रंग तो छोड़ो तुम्हे तो हमारी तरफ देखन की फुर्सत न मिली”
“का्य बोल रही हो?”
“हाँ–हाँ जब आसपास तितलियाँ हो तो मधुमक्खी को कौन छूना चाहेगा .. ऐसे दूर भाग रहे थे हमसे कि पास आए तो हम डंक मार देंगे तुमका”
“अरे गुस्सा थूको मेरी राधा रानी अब मेरी सोचो ..चार–चार सालियाँ और दो ठो सलहज , सब घेर लिए हमको ..अब हम ठहरे नये दामाद ..अरे अब तुमअही बताओ का चूहा की तरह बिल में दुबक जाते ..अरे नाही हो ..हम भी फिर कलाई पकड़ के रंग दिए सबके”
.. कहते हुए मुस्कुराहट छुपाने की भरसक कोशिश कर रहा था रघु .. पर एक पत्नी तो तो जो न नज़र आए वो भी पकड़ लेती है ..मुस्कुराहट ने आग में घी और डाल दिया ..
“अच्छा !! और हमका बेवकूफ समझे हो का ..हम रंग लगाने खातिर तुम्हारा रास्ता जोहत रहे और तुम जा के लग गये साली–सलहज में ..बहुत चिपक–चिपक कर रंग लगाए जा रहे थे सबके और काहे मोर बन गये थे उस लड़की को देखकर ..कितनी बार उसको ठंडई पिलाई ..अरे वहीं दुकान काहे नही खोल के ही बैठ गये ऊकी खातिर ….ऊ भी जीजाजी–जीजाजी रंग लगाएगें आपको कह के जीजाजी के पीछे ढेर हो रखी और आपहूँ लट्टू होए रहे उसके पीछे ..बड़की मौसी कहत रही हमसे कि दामाद जी काफी रंगीन मालूम होते हैं …”
“अरे तुम गलत समझ रही हो?”.
“हाँ–हाँ अब गलत भी हमही हैं ..और तुम तो राजा रामचंदर हो ना ..सारी बुराइयाँ तो हम में ही हैं ..हम थोड़े मोटे भी हैं उतते खूबसूरत भी नाही हैं ..”
’थोड़े मोटे’ पर ज़्यादा जोर था राधा का ..
“अरे कहाँ मोटी हो .. कटरीना तुमसे ज्यादा भरी लगती है .. तुम ओ गाना नहीं देखि का .. अरे वो है न .. पसमिना नाड़े ?
“नाड़े नहीं धागे”
“हाँ वही .. धागा मोटा है न याने की नाडा”
राधा हंस के शरमा गयी मगर इतनी जल्दी कैसे हार मान लेती..
“कटरीना तो बहुत सुन्दर और स्लिम है”
“पर कटरीना तुम्हारी तरह क्यूट और पोसेससिव थोड़े न है .. उसके लाल बालों से तुम्हारे गालों पर गुस्से का ये लाल रंग ज्यादा जंचता है”
“कुछ भी”
अच्छा कल तुमको रोज गार्डन ले चलेंगे ..थोड़ा अबीर बुक्का भी चुरा लेना अम्मा की मेज से और भाभी से गुझिया भी बँधवा लेना ..”
“अच्छा छोडो .. ई बताओ तुम्हरे फोन में फेसबुक है का ?
“हाँ बिल्कुल है राधा रानी”
“तब ठीक है ..अब मजा आएगा ..वहीं से फोटू चिपका देना सारी मोहल्ले भर की सालियाँ–सलहज जल जयिहें देख के”
रघु को हँसी आ गई .. उसकी सलोनी पत्नी को पति के साथ होली खेलने से ज्यादा सालियों को जलाने की फिक्र थी ..
“अच्छा .. धीरे बोलो राधा रिक्शा वाला हँसत है ..कहीं भिड़ाए न दे टेम्पू में”
“का बाबूजी हम कुछु नाही सुने”
घबरा कर रिक्शे वाले ने रेडियो तेज कर दिया .. “रंग बरसे भीगे चुन्नर वाली रंग बरसे .. “
ये गीत सुन के दोनों पति पत्नी एक दूसरे को देख के हंस पड़े..
( आज सिरहाने के लिए )
By:
Ruchi Rana
Shikha Saxena