Friday 8 January 2016

धूप का टुकड़ा ....

जब छाने लगते हैं 
  निराशा के बादल ...
और होने लगती हैं
          बेमौसम अनचाही बारिशें ...
तभी आ जाता है 
उड़ता हुआ ...
पता नही 
कहाँ से
एक धूप का टुकड़ा ...
उम्मीद से भरा हुआ ...
और जागने लगती हैं
फिर से ..
जीने की ख्वाहिशें ....

(तस्वीर -अरूणा जी )

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