एक बार लिखना है तुम्हें..पन्नो पर ...
अनदेखे-अनजाने ही सही तुम
तो क्या हुआ ..
जो मिले नही कभी हम
यूँ लगता है ..हर पल साथ है तुम्हारा
सुना नही मैंने कभी तुम्हे
पर कानों में तुम कुछ कह कर चले जाते हो अक्सर
और मैं हँस पड़ती हूँ खिलखिलाकर ...
पास नही हो मेरे तुम
पर दुनिया जाने क्यों लगने लगी है रोशन ...
हर चीज अच्छी लगने लगी है
बेवजह की बातें भी अब प्यारी लगने लगी हैं ...
अनदेखे-अनजाने ही सही तुम
तो क्या हुआ ..
जो मिले नही कभी हम
यूँ लगता है ..हर पल साथ है तुम्हारा
सुना नही मैंने कभी तुम्हे
पर कानों में तुम कुछ कह कर चले जाते हो अक्सर
और मैं हँस पड़ती हूँ खिलखिलाकर ...
पास नही हो मेरे तुम
पर दुनिया जाने क्यों लगने लगी है रोशन ...
हर चीज अच्छी लगने लगी है
बेवजह की बातें भी अब प्यारी लगने लगी हैं ...
कोई ख्वाहिश भी नही है कि मिलें हम
सिर्फ इस एक एहसास को जीना चाहती हूँ...
बस पन्नों पर तुम्हे छूना चाहती हूँ...
सिर्फ इस एक एहसास को जीना चाहती हूँ...
बस पन्नों पर तुम्हे छूना चाहती हूँ...