Saturday 22 August 2015

दुपहरियाँ ...

खुशनुमा दुपहरियाँ....
बड़ी याद आती हैं अक्सर ...सन्नाटे की दोपहर में
मन करता है कि लगा दूँ वो सारी दोपहरें किसी एल्बम में..
और देखा करूँ
कुछ उन पलों को याद करूँ और इस लंबे सन्नाटे को काटूँ
तुम्हारे पास भी तो होता होगा कभी दोपहर का सन्नाटा और..
कुछ अकेलापन सा ...
अगर तुम्हे चाहिए तो भेज दूँगी मैं
वो खुशनुमा दोपहरें ...
पोस्ट करके ....

Thursday 6 August 2015

खामोशी ...ख्वाब ....ख्याल ...और रातें

रात की सीढ़ी पर चढ़कर ...
आसमां से कुछ सपने उतारने हैं

दिन के कितने ही सवालों के...
खामोश से जवाब हैं रातों के

ख्वाबों की स्याही है...
रात कुछ लिखेगी
सुबह सौदे करेगी

दिन भर जमाने से उलझना ..
मगर रात.. अपने दिल को भी समझना

तारों के जाल में उलझ कर रह गये सपने ...
अब चाँद तक पहुंच कर कौन जाएगा छुड़ाने

चंद ख्वाहिशें जिन्हे दिन ने ठुकरा दिया ...
अब रात पनाह देगी उन्हें ख्वाबों के घरौंदों में

सपनो की खिड़कियों के पर्दे सरकने लगते हैं...
जब चाँद रात की गलियों से गुज़रता है


Monday 3 August 2015

मैं बुद्ध नही ....

त्याग दिया...
संसार ...
गौतम ने,
सत्य के लिए ...
पर मैं....
नही छोड़ सकती ...
यही रहकर
तलाशना होगा
मुझे ...
शायद पड़ा हो
कोई सत्य ...
इन्ही उत्तरदायित्वों के तले ...