Wednesday 29 March 2017

दिन की खुरचन है शाम...

कोई कर्ज़ चढ़ा हुआ है शाम पर शायद
जाती धूप के कदमों तले बिछती है रोज़..

धूप के सफ़र में तमाम उम्र निकाल दी
इक शाम तेरी गली में गुज़ारने के लिए ..

दिन के उड़ते ख़्यालों की आवारगी
शाम की गली के नुक्कड़ पर जा रूकी ..

एक सूरज बसा हैं तेरी यादों के उजाले में,
मेरी शामों का रंग कभी ढलता नही है...

एक आवारा दिन को भी,
शाम खूबसूरत ही चाहिए ..

फटा-पुराना दिन ये
चाँद के पैबंद से ढाँक लें ..

उड़ गया था जो पंख फैलाए धूप तले
इंतज़ार में है घर उस परिंदे का शाम ढले...

चाँद का ज़मीं से फासला था बहुत
शाम ने झील में जब तक उतारा ना था...

इक इंतज़ार शाम की आँखों में,
चाँद को उतरना ही पड़ा आँगन में...

धूप की कमाई खर्च कर के,
शाम के लिए एक चाँद खरीदा है..



3 comments:

  1. धूप की कमाई खर्च कर के,
    शाम के लिए एक चाँद खरीदा है.

    बहुत उम्दा

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  2. वाह खूबसूरत

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  3. This comment has been removed by the author.

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