Friday 25 September 2015

कभी तो....

वक्त के बंधन में क्या मिलें,
कभी समय के परे भी तो मिलो...

रस्मो-रिवाजों की पथरीली ज़मीं है,
कभी उड़ने के लिए आसमान भी तो बनो...

उजालो में तो हर शख्स साथ देता है,
कभी अंधेरों की राह में रोशनी भी तो बनो...

हर शख्स सुनता है आवाज़ों को,
कभी मेरी खामोशियों को भी तो सुनो...

दो जहाँ की करते हैं सब बातें,
कभी सितारों के आगे भी तो चलो...

Thursday 24 September 2015

लिखते तो बचपन में थे ...

अब तो सिर्फ पन्ने भरते हैं ...लिखते तो बचपन में थे
आड़ी-तिरछी रेखाएँ ...उल्टे-सीधे शब्द  ..
हर गोल चीज सूरज बन जाती थी ...पहाड़ों से नदी बह जाती थी ..
मंज़िल तक पहुँचना तब कितना था आसान ..हर टेढ़े-मेढ़े रास्ते पार हो जाते थे
लिखने की कोई वजह ही नही थी ....लिखना खुद में एक वजह था
रंगीन दुनिया थी.....हर रंग की अपनी कहानी थी
फैले रहते थे बेतरतीबी से पूरे पन्ने पर ...पंक्तियों में सजना शायद पसंद ही नही था ....
उस बिखराव में कितनी खूबसूरती थी ...भटक गयी है जो आज कहीं ...

Saturday 19 September 2015

कुछ एहसास ....

एक टूटे सूखे पत्ते का ...
कैसा होता है एहसास
छूट जाता है शाख का भी साथ ....
न आसमां और न ही रहती है जमीं पास ....
हवाओं के रहमो करम ही जीते जाना है
हरे-भरे थे जो कभी .. अब सिकुड़ती-झड़ती जिन्दगी को बिताना


मैं यहीं हूँ..
कुछ एहसास लिए
दूरियों में नजदीकियों का..
खामोशियों में बातों का ..

मैं यहीं हूँ...
कुछ एहसास लिए
कदमों में हौसलों का...
बेनाम रिश्तों में प्यार का

मैं यहीं हूँ....
कुछ एहसास लिए
धूप में छाँव का ...
सर्द जज़्बातों में तपन का ...

मैं यहीं हूँ...
कुछ एहसास लिए
आँसुओं में मुस्कुराहट का ...
वीरान में बहार का...

मैं यहीं हूँ...
कुछ एहसास लिए

Friday 18 September 2015

जंगली फूल

शायद तुमने छुआ है दिल को .....
नही तो बेवजह ही नम नही होता दिल मे छुपा वो कोना
और न ही खिलते कुछ खुबसूरत से जंगली फूल ...
फैलते जाते हैं जो बेतरतीबी से
जिन्हे ज्यादा प्यार-दुलार की जरूरत नही ....बस काफी है जमीं का भीग जाना ही ..
खंडहर सा वीरान पड़ा रहता है बरसों तक कोई दिल
जिसकी तरफ नज़र पड़ती ही नही किसी की...
फिर अचानक ही खिल जाते हैं कुछ फूल
और लगने लगता है कि
शायद अभी भी बचा है कुछ ...
शायद कुछ मौसम बचे हैं अभी ...




Monday 14 September 2015

आँखों में इतने अनकहे अफसाने
मगर होठों पे खामोशी लिए फिरते हो ...
ढूँढती हैं निगाहें तुम्हारी मुझे
फिर मिलने पर नज़र क्यों चुराते हो ...
यूँ तो कोई बात नही करते
फिर भी कितना झूठ बोलते हो ....

हाइकु

ढलती धूप
निखराती ही जाए
रंग शाम के

धूप जो पर
समेटे तो शाम के
पंछी भी उड़ें 

खुश्बू शाम की .....

शाम की भीनी-भीनी खुश्बू से,
रात और दिन हैं महके से..

आकाश की आँखों के कोने से
दिन की बूँदे लुढ़क गई ....
भावनाओं में बहने लगी है 
कुछ शाम भी....

तमाम इंतजार मुस्कराते हैं 
जब हथेली में मेरी ....
तुम्हारी रखी हुई एक शाम पाते हैं 

तू धूप की तरह बस छू के न गुज़रे, 
किसी शाम की तरह रूह में भी उतर जाए ...

रोशनी के पन्ने पलटता रहा दिन, 
शाम कोई कहानी में ढलती रही ...

समुंदर के पानी पर,धूप ने लिखे थे जो किस्से तमाम ...
मिटा के उन लहरों पर शाम लिखेगी अब चाँद का नाम ..

यूँ तो जुदा हैं ...दिन और रात की राहें
पर एक पल के लिए ही सही ..करीब ले ही आती हैं शामें

धीर से सूरज को कोने में खिसका कर...
अपने रंग बिखेर देना ...
शाम की पुरानी आदत है 

कभी-कभी शाम भी खर्च हो जाती है ....दिन को बेहतर बनाने में







Saturday 12 September 2015

तारों का आँगन ..

ये तारे इतने टिमटिमाते क्यों हैं...
न न .... नही चाहिए जवाब वो साइंस का..नीरस सा
बताइए कुछ रहस्यमयी या रोमांटिक सा..
शायद बीते वक्त के किस्से तारों में छुप जातें हैं तभी तो रात के अंधेरे अनसुनी कहानियों को सपनो में सुनाने आते हैं
या फिर ये उनकी है मुस्कान कोई ..
वो गाना है ना..चाँद खिला वो तारे हँसे..
एक प्यारी सी मुस्कुराहट .. जिससे आकर्षित होकर चाँद खींचा चला आता है
क्या आपने देखा है कभी छत पर लेट कर ...
घंटों तारों को एकटक ...
गुलज़ार साहब का वो गाना तो सुना ही होगा "तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए"...
अगर इसको अनुभव नही किया है तो सच मानिए..आपने बहुत कुछ छोड़ दिया है.....
वैसे आप क्या सोचते हैं ?

Friday 11 September 2015

मेरी डायरी


मेरी डायरी ...
बंद पड़ी है पता नही कब से ..अलमारी के अंदर 
खाली-खाली पन्नो के खाली-खाली दिन 
बस पलटते जाते है ..बेमतलब से 
समझ नही पा रही है वो कि 
जिन बातों को अपने सीने में छुपाती थी 
उन्ही बातों को अब छुपाया जा रहा है क्यों उससे ही
जब भी खुलती है अलमारी ,
मैं नज़रें चुराती हूँ 
पता नही किस ग्लानि से ...
और वो भी देखती है, 
पता नही किस उम्मीद से ...
कि शायद आज वो मेरे हाथो मे होगी 
और कही जाएँगी कुछ बातें उससे ...
तरसती रहती है सुनने को वो 
जो मुझसे ....