Tuesday 26 July 2016

शाम होते जल जाते हैं आँखों में उम्मीदों के दिए

सुलझी हुई राहों को उलझाने के लिए आ जाता है
वो मुझे फिर से बिखराने के लिए आ जाता है

साहिल पर बिखरी रहती हैं जो यहाँ रेत सी ख़्वाहिशें
सागर कोई फिर इन्हे बहाने के लिए आ जाता है

बहुत अंधेरें फैलते हैं जब ख़्वाबों की राह के दरम्यान
चाँद खिड़की से झाँककर रोशनी के लिए आ जाता है

शाम होते जल जाते हैं आँखों में उम्मीदों के दिए
कोई उस सूने घर दस्तक के लिए आ जाता है

जब भी लगा कि पढ़ ली ज़िंदगी की किताब पूरी
सामने एक नया पन्ना पढ़ने के लिए आ जाता है

उजाले अंधेरों में ढलने लगे हैं

उजाले अंधेरों में ढलने लगे हैं
ख़्वाब आँखों में पलने लगे हैं

ज़मीं ही काफी नही थी यहाँ
लोग चाँद पर चलने लगे हैं

एक उम्र धूप का सफ़र करके
रास्ते भी अब बदलने लगे हैं

चुभते हैं तमाम रोशनी के ठिकाने
चमकते सितारे भी जलने लगे हैं

आँखें कह जाती हैं सारा सच
लफ़्ज़ झूठ पर पलने लगे हैं