रात की सीढ़ी पर चढ़कर ...
आसमां से कुछ सपने उतारने हैं
दिन के कितने ही सवालों के...
खामोश से जवाब हैं रातों के
ख्वाबों की स्याही है...
रात कुछ लिखेगी
सुबह सौदे करेगी
दिन भर जमाने से उलझना ..
मगर रात.. अपने दिल को भी समझना
तारों के जाल में उलझ कर रह गये सपने ...
अब चाँद तक पहुंच कर कौन जाएगा छुड़ाने
चंद ख्वाहिशें जिन्हे दिन ने ठुकरा दिया ...
अब रात पनाह देगी उन्हें ख्वाबों के घरौंदों में
सपनो की खिड़कियों के पर्दे सरकने लगते हैं...
जब चाँद रात की गलियों से गुज़रता है
आसमां से कुछ सपने उतारने हैं
दिन के कितने ही सवालों के...
खामोश से जवाब हैं रातों के
ख्वाबों की स्याही है...
रात कुछ लिखेगी
सुबह सौदे करेगी
दिन भर जमाने से उलझना ..
मगर रात.. अपने दिल को भी समझना
तारों के जाल में उलझ कर रह गये सपने ...
अब चाँद तक पहुंच कर कौन जाएगा छुड़ाने
चंद ख्वाहिशें जिन्हे दिन ने ठुकरा दिया ...
अब रात पनाह देगी उन्हें ख्वाबों के घरौंदों में
सपनो की खिड़कियों के पर्दे सरकने लगते हैं...
जब चाँद रात की गलियों से गुज़रता है
Beautiful
ReplyDelete