Tuesday 28 April 2015

जो भी आया

यूँ तो जो भी आया...
लिख के गया
हर रिश्ते ने 
अपनी मनमर्जी से भरा...
फिर भी ..
खाली सी है जिन्दगी
और कोरे से दिन
खुद भरूँ अपने शब्दों से..
कभी सोचा नही
उम्मीदें थी उड़ने को बेताब,
पर मिला आसमां नही..
मेरी डोर ने,
हाथ किसी और का पाया
#SShikha

8 comments:

  1. बहुत सुंदर लेखन शिखा जी। शुभकामनायें..

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  2. bahut hi sundar
    abhinanan shikha ji

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  3. आप सबका शुक्रिया पसंद करने के लिए :)

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