Sunday 4 October 2015

और तुम चले गये....

अभी तो बातें थी बहुत ...
जो मुझे कहनी थी
और शायद कुछ बाते तुम्हारी
जो मुझे भी सुननी थी
अभी तो सिलसिले शुरू ही हुए थे...
और तुम चले गये...

अभी तो हाथ थाम कर
चाँद देखना था
और आसमां से लटके तारो से
कोई ख्वाब बुनना था
अभी तो शाम आई ही थी...
और तुम चले गये...

अभी तो सपनो का
आशियाना बनाना था
और अपने अरमानो से रोशन
आँगन सजाना था
अभी तो सफर शुरू ही हुआ था...
और तुम चले गये ...

अभी तो बारिशों का
मौसम भी बचा था
इन खिले फूलों के संग
हमें भी तो भीगना था
अभी तो हवाएँ खुश्बू लाई ही थी...
और तुम चले गये...

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