Tuesday 26 July 2016

उजाले अंधेरों में ढलने लगे हैं

उजाले अंधेरों में ढलने लगे हैं
ख़्वाब आँखों में पलने लगे हैं

ज़मीं ही काफी नही थी यहाँ
लोग चाँद पर चलने लगे हैं

एक उम्र धूप का सफ़र करके
रास्ते भी अब बदलने लगे हैं

चुभते हैं तमाम रोशनी के ठिकाने
चमकते सितारे भी जलने लगे हैं

आँखें कह जाती हैं सारा सच
लफ़्ज़ झूठ पर पलने लगे हैं 

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