Friday 11 December 2015

अनचाहा एहसास

आंटी मिठाई दे दो ...
आज दीवाली है ना ....छोटी बहन को खिलाना है
अच्छा धंधा है माँ-बाप का भीख मंगवाने का ....पलटने लगी मैं
माँ नही है ....
एक बोझ सा उभर आया ....एक मिठाई की तो बात थी
कुछ काम है ?
ये कूड़ा डाल आ ....बीस रुपए दे दिए ...उस बोझ को दबाने की जल्दी थी शायद
अकस्मात सुबह वाली लड़की पर नजर पड़ी ...पास ही खाना था ...बहन को मिठाई खिला रही थी ...याद आया कि आज कूड़े में खराब हो रही उसी मिठाई का डब्बा डाला था
दबा बोझ अब दर्द देने लगा था

(आज सिरहाने के लिए )
1 कहानी 101 शब्द 

1 comment:

  1. मारक..अपनों के लिए संवेदनशील और दूसरों के लिए संवेदनहीन यर प्रवृति हम सब में पनपती जा रही है।

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