शाम की भीनी-भीनी खुश्बू से,
रात और दिन हैं महके से..
आकाश की आँखों के कोने से
दिन की बूँदे लुढ़क गई ....
भावनाओं में बहने लगी है
कुछ शाम भी....
तमाम इंतजार मुस्कराते हैं
जब हथेली में मेरी ....
तुम्हारी रखी हुई एक शाम पाते हैं
तू धूप की तरह बस छू के न गुज़रे,
किसी शाम की तरह रूह में भी उतर जाए ...
रोशनी के पन्ने पलटता रहा दिन,
शाम कोई कहानी में ढलती रही ...
समुंदर के पानी पर,धूप ने लिखे थे जो किस्से तमाम ...
मिटा के उन लहरों पर शाम लिखेगी अब चाँद का नाम ..
यूँ तो जुदा हैं ...दिन और रात की राहें
पर एक पल के लिए ही सही ..करीब ले ही आती हैं शामें
धीर से सूरज को कोने में खिसका कर...
अपने रंग बिखेर देना ...
शाम की पुरानी आदत है
कभी-कभी शाम भी खर्च हो जाती है ....दिन को बेहतर बनाने में
बहुत खूब शिखा जी ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है आपने।
अभिनन्दन ।
शुक्रिया राहुल जी
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