Saturday 19 September 2015

कुछ एहसास ....

एक टूटे सूखे पत्ते का ...
कैसा होता है एहसास
छूट जाता है शाख का भी साथ ....
न आसमां और न ही रहती है जमीं पास ....
हवाओं के रहमो करम ही जीते जाना है
हरे-भरे थे जो कभी .. अब सिकुड़ती-झड़ती जिन्दगी को बिताना


मैं यहीं हूँ..
कुछ एहसास लिए
दूरियों में नजदीकियों का..
खामोशियों में बातों का ..

मैं यहीं हूँ...
कुछ एहसास लिए
कदमों में हौसलों का...
बेनाम रिश्तों में प्यार का

मैं यहीं हूँ....
कुछ एहसास लिए
धूप में छाँव का ...
सर्द जज़्बातों में तपन का ...

मैं यहीं हूँ...
कुछ एहसास लिए
आँसुओं में मुस्कुराहट का ...
वीरान में बहार का...

मैं यहीं हूँ...
कुछ एहसास लिए

No comments:

Post a Comment