Monday 14 September 2015

हाइकु

ढलती धूप
निखराती ही जाए
रंग शाम के

धूप जो पर
समेटे तो शाम के
पंछी भी उड़ें 

3 comments:

  1. झूझती रही ..
    बिखरती रही ...
    टूटती रही

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  2. कुछ इस तरह
    ये ज़िन्दगी ......
    निखरती रही !

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  3. बहुत खूब यशोदा जी

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